मेरा जंगल-मित्र सरसवाहि
आज एक लंबे अरसे बाद आज अपने जंगल-मित्र सरसवाहि से मुलाक़ात हुई! सरसवाहि ने बड़े प्रेम और उमंग के साथ मेरा स्वागत किया. कुछ आँमले भेंट में दिए. अपनी मित्र-मंडली के एक नए सदस्य सियार से मिलवाया. सियार थोड़ा शर्मीला था; पहले तो हमें एकटक देखता रहा, फिर अचानक झाड़ियों में कहीं छुप गया.

मेरा जंगल-मित्र बेहद विशाल और समृद्ध है! लाखों पेड़ों का मालिक. हज़ारों रंग-बिरंगे अनोखे पंछियों ने इन पेड़ों पर अपना बसेरा बनाया है. दिनभर वे अठखेलियाँ करते रहते हैं. और उनकी अनूठी आवाज़ों का ऑर्केस्ट्रा चलता रहता है. कभी पेड़ हवा के साथ मस्ती में झूमते दिखाई देते हैं. कभी एकदम शांत हो जाते हैं―निस्तब्ध! उनके नृत्य और स्थिरता दोनों में ही एक काव्य है.

आज हमेशा की तरह दूर तक, देर तक मैं पैदल चलता रहा. सूखी पत्तियों का गलीचा बिछा था. क्या खनकदार संगीत उठता और चहुदिश गूँजता! कहीं चीटियाँ अपनी दौड़-भाग में व्यस्त थीं, तो कहीं दीमकें लकड़ी की दावत उड़ा रही थीं.

पिछले साल की यादें तरोताज़ा हो गईं जब लगातार तीन महीने तक हर रोज़ जंगल जाता था कुछ छात्रों के साथ. कभी पेड़ों पर चढ़ते, तो कभी शांत बैठ ध्यान में डूब जाते; कभी साँस रोककर चोरी-चोरी हिरणों की उछलकूद देखते, तो कभी काले मुँह के बंदरों की धमाचौकड़ी का आनंद लेते. एक शाम साँपों को बचाने वाले एक व्यक्ति से मिलना हुआ. उनके पास दो-तीन साँप थे उस दिन जिन्हें वे सरसवाहि की गोद में छोड़ने आए थे. उनमें से एक कोबरा भी था. बड़ा रोमांचक क्षण था वो! जब कोबरा को छोड़ा गया तो वह कुछ दूर जाकर पलटा और हमारी ओर देखने लगा, बिल्कुल स्थिर दृष्टि से. क़रीबन एक घंटे बाद जब हम उस रास्ते से वापस लौट रहे थे तब भी कोबरा वहीं था. और यूँ लगा मानो अभी भी हमें देख रहा हो.

पिछले साल हमने ये ध्यान दिया कि जंगल के रास्ते पर और अंदर भी बहुत कचरा बिखरा हुआ है. पान मसाले के पाउच, शराब की बोतलें, चिप्स, नमकीन के पैकेट, और जाने क्या-क्या. मनुष्य भी अजीब है, प्रकृति का आनंद लेने जाता है और वहाँ गंदगी छोड़ कर आ जाता है. प्रकृति हमें कितना कुछ देती है, फिर भी हम उसके प्रति इतने संवेदनशून्य कैसे हो सकते हैं? कैसे हम इतने सुंदर स्थानों को कचराघर में बदल देते हैं? ख़ैर, उस गंदगी को हटाने के लिए हमने काव्या परिवार की तरफ़ से एक वन सफाई अभियान कराया. और कुछ ही समय में जंगल की रूपरेखा ही बदल गई.

आगे, हमें यह लगा कि जंगल ने हमें इतना कुछ दिया है, तो क्यों न हम भी अपनी तरफ़ से उसे कुछ छोटी सी भेंट दें. मित्रता का सौंदर्य आदान-प्रदान में ही होता है. इससे अंतर नहीं पड़ता कि आप कितना देते हैं; बस देने का भाव होना चाहिए. छोटी सी छोटी भेंट भी प्रेमपूर्वक दी जाए, तो उसमें मिठास होती है. जंगल के एक अधिकारी ने हमें बताया कि जंगल के जानवरों को पानी की उचित व्यवस्था नहीं थी. उन्हें पानी के लिए एक उच्चमार्ग (highway) को पार करके सामने के एक जलाशय में जाना पड़ता था. कुछ जानवरों की इस दौरान दुर्घटना में मृत्यु भी हो जाती थी. इसे ध्यान में रखते हुए हमने काव्या परिवार की ओर से तुरंत वहाँ पर एक जलाशय की व्यवस्था करवाई. साथ ही, सरसवाहि के कुछ अन्य मित्रों जैसे कैलवारा और कन्हवारा में भी जलाशयों का निर्माण करवाया एवं पौधारोपण कार्यक्रम भी करवाया.

सरसवाहि हमारे इस प्रेम उपहार से बड़ा आनंदित हुआ और उसने हमें अपनी एक फ़िल्म को बनाने के लिए एक बहुत सुगम और उपयुक्त स्थान उपलब्ध कराया, जिससे फ़िल्म के सौंदर्य में चार चाँद लग गए.

यूँ ही चलता रहा है मेरे जंगल-मित्र के साथ दोस्ती का यह सफ़र. इंसानों की दोस्ती ने तो कई बार निराश किया है, लेकिन सरसवाहि ने हमेशा दोस्ती निभाई है. चाहता हूँ अंतिम क्षण तक यह दोस्ती बनी रहे.